मोनू कुमार, पटना: हम इतिहास के पन्नों पर पढ़ते हैं कि ब्रिटिश राज के दौरान लाखों भारतीयों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेशों में काम करने के लिए भेजा जाता था। इन लोगों को अफ्रीका, हिंद महासागर और कैरिबियन सागर के द्वीपों पर विभिन्न कार्यों में लगाया जाता था। इन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा जाता हैं। इनसे सड़क निर्माण, रेल पटरी बिछाना, खेतों में मजदूरी करवाई जाती थी। इसी इतिहास को आज के लोगों के सामने लाने के लिए बिहार के डॉ प्रवीण झा ने ‘कुली लाइन्स’ नामक एक किताब लिखी है। “द बेटर बिहार” से बात करते हुए नार्वे में रहने वाले प्रवीण ने इस किताब से लेकर अपने दूसरों किताबों और अपनी जिंदगी से जुड़ी किस्से साझा किए।

प्रवीण की निजी ज़िन्दगी
प्रवीण का जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था लेकिन उनका बचपन दरभंगा जिले में बीता। शुरूआती शिक्षा दरभंगा से पूरी करने के बाद उन्होंने पुणे से एमबीबीएस किया। इसके बाद तीन वर्ष अमेरिका में अल्ज़ाइमर बीमारी पर शोध करते हुए बिताए। फिर 2006 में उन्होंने दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से रेडियोलॉजी में स्तानतकोत्तर किया। पांच साल पहले वे नॉर्वे चले गए और अब वहीं प्रैक्टिस करते है।
कुली लाइन्स
पिछले साल वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई ‘कुली लाइन्स’ मध्य 19वीं शताब्दी के गिरमिटिया मजदूरों के बारे में हैं। किताब लिखने के बारे में डॉ प्रवीण झा ने बताया कि, “मैं पिछले पांच सालों से विदेश में रह रहा हूं। एक बार मुझे ख्याल आया कि 150 साल पहले बिहार से दूसरे देशों में लोग गए और कई वहीं बस गए। आज कईयों के छठें वंशज उन जगहों पर रह रहे हैं। ये लोग अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कृति को आज भी संजो कर रखे हुए हैं। ये लोग सोहर, बिरहा और अन्य लोक गीतों के साथ बिहार के संगीत वाद्य यंत्र बजाते हैं। मुझे लगा बिहार से सालों पहले अपना घर छोड़ दूसरे देश जाने वाले लोगों पर कुछ लिखना चाहिए और फिर मैंने यह किताब लिखी। “अपनी इस किताब का नाम कुली लाइन्स रखने के पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि, “भारत से अफ्रीका गए लोगों को अंग्रेज कुली कहते थे और जहां भारतीय रहते थे उस क्षेत्र को कुली लाइन्स कहते थे। इसी वजह से मैंने अपनी इस किताब का नाम कुली लाइन्स रखा।” इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रवीण को काफी शोध करना पड़ा। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा तैयार किए गए आर्काइवस् का सहारा लिया। अंग्रेज सरकार के पास भारत से जाने वाली हर जहाज का ब्यौरा रखा हुआ है और यह ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके अलावा उन्होंने अफ्रीका, कैरिबियन देशों में रह रहे भारतीय मूल के कई लोगों से बातचीत की।

प्रवीण की अन्य किताबें
प्रवीण झा पेशे से भले ही डॉक्टर है लेकिन उन्हें लिखने का बहुत शौक है। अभी तक वे कुल नौ किताबें लिख चुके हैं जिसमें से तीन प्रकाशित हुई है जबकि बाकी के छः किंडल पर सॉफ्टकॉपी में उपलब्ध हैं। प्रकाशित किताबों में कुली लाइन्स के अलावा वाह उस्ताद और चमनलाल की डायरी हैं। किंडल पर उपलब्ध किताबों में प्रमुख “भूतों के देश में : आइसलैंड, नास्तिकों के देश में : नीदरलैंड्स, जेपी : नायक से जननायक बनने तक, इरोडोव कथा आदि है। अभी वे दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर एक किताब लिख रहे हैं।

नॉर्वे और भारत में अंतर
नार्वे और भारत के बीच अंतर के सवाल पर प्रवीण ने कहा कि, “दोनों देश एक दूसरे से बहुत अलग है। भारत की आबादी 130 करोड़ है तो वहीं नार्वे में लोग काफी दूरी पर दिखते हैं। दोनों देशों की सरकारें अलग-अलग ढ़ंग से कार्य करती हैं। भारत में कार्यपालिका विधायिका का हिस्सा होती है जबकि नार्वे में कार्यपालिका के लोग विपक्षी दलों से भी होते हैं। नार्वे में सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर भारी भरकम रकम खर्च करती है जबकि भारत में इन दोनों पर खर्च कम है।” दोनों देशों के वर्क कल्चर के बारे में उन्होंने कहा कि, “दोनों जगहों के वर्क कल्चर बिल्कुल भिन्न है। नार्वे में हफ्ते में 40 घंटे काम लिया जाता है। इससे ज्यादा काम करने की इज़ाज़त नहीं है। तो वहीं भारत में लोगों के पास ऐसी सुविधा नहीं है।”
हॉबिज
पिछले पांच वर्षों से अपनी जन्मभूमि से दूर रह रहे डॉ प्रवीण झा अब अपने आप बिदेसिया कहते है। 40 वर्षीय प्रवीन को ट्रेवलिंग और ट्रेकिंग का शौक है। तथा उनकी अभिरुचि शास्त्रीय संगीत में भी है।
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